Monday, 31 October 2016

आज के दिन रहेगी एसपी इण्टर कालेज कोलन में धूम, याद किये जायेगे सरदार पटेल : संदीप राय


कोलना : बात सरदार पटेल की हो और पूर्वांचल के जिले मिर्जापुर के अंतर्गत तहसील चुनार के बड़े मानिंद गांव कोलना में स्थित सरदार

पटेल कालेज की न करू हो ही नहीं सकता ! वर्षो से आ रही पटेल की जयंती जितने धूम धाम से यहाँ मनाई जाती है वैसी किसी और कालेज में आपको देखने को नहीं मिलेगी, वर्ष २००२ से २००५ तक की  क्लास ९ से १२ तक के अध्ययन के दौरान हम यहाँ हुए कई कार्यक्रम और आयेहुए अतिथियों के साक्षि रहे, थोड़ी बात सरदार की भी बनती है जो अगरदेश के प्रधान मंत्री बने होते तो आज कश्मीर कोई मुद्दा नहीं होता कोई धरा ३७० के मोहताज हम नहीं होते लेकिन नेहरू ने सब गुणगोबर कर दिया !सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने। बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहाँ की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है। बारडोली कस्बे में सशक्त सत्याग्रह करने के लिये ही उन्हे पहले बारडोली का सरदार और बाद में केवल सरदार कहा जाने लगा।सरदार पटेल जहां पाकिस्तान की छद्म व चालाकी पूर्ण चालों से सतर्क थे वहीं देश के विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे। विशेषकर वे भारत में मुस्लिम लीग तथा कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी भक्ति से सजग थे। अनेक विद्वानों का कथन है कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे। लेकिन लंदन के टाइम्स ने लिखा था "बिस्मार्क की सफलताएं पटेल के सामने महत्वहीन रह जाती हैं। यदि पटेल के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते। पटेल सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के ह्मदय के सरदार थे।

मेरी नजर में तो बूढ़ा हो गया है चुनारगढ़ में चन्द्रकांता का किला : संदीप राय

मिर्जापुर।: चुकी मैं तहसील चुनार के अंतर्गत और अदलहाट और बंगला बाजार के पास के एक ऐतिहासिक गांव से  मध्यम  वर्गीय परिवार से आता हु अतएव आज कुछ अपने गांव गिराव और जिले के बारे में अपनी जुबानी जो कुछ अभी तक सुन रखा हु या गूगल से पता किया है उसको कम शब्दो में बताता हु,

 उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर के चुनार में रहस्य, रोमांच, विस्मय और जादू की रोमांचक दास्तानों से भरपूर किवदंतियों एवं लोककथाओं के लिए विख्यात देश का अनोखा चन्द्रकांता का चुनारगढ़ का किला बूढ़ा हो गया है। गढ़ की दीवारें, प्राचीरें और चट्टानी जीवट वाले बुर्ज शताब्दियों से समय के निर्मम थपेड़ों की चोट झेलते-झेलते अब जर्जर हो चुकी है। समय के साथ अब इसकी चोट सहने की शक्ति लगभग खत्म हो रही है।
राजा भर्तहरी की तपोस्थली व हिन्दी के पहले उपन्यासकार देवकीनंदन खत्री की तिलिस्म स्थली चुनारगढ़ अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है और इस ओर किसी का ध्यान नही है। उत्तर भारत के शासकों के जय-पराजय का हमराज किसी समय ध्वस्त हो सकता है। हिन्दुओं की पवित्र धार्मिक नगरी वाराणसी जाने के लिए गंगा के लिए मार्ग प्रशस्थ करने वाले विंध्य पर्वत पर चरण आकार वाले इस किले का प्राचीन नाम चरणाद्रिगढ़ रहा है।
 उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर के चुनार में रहस्य, रोमांच, विस्मय और जादू की रोमांचक दास्तानों से भरपूर किवदंतियों एवं लोककथाओं के लिए विख्यात देश का अनोखा चन्द्रकांता का चुनारगढ़ का किला बूढ़ा हो गया है।

यदि विंध्याचल पर्वत नहीं होता तो गंगा वाराणसी की ओर न जाकर दक्षिण दिशा की ओर जाती। गंगा पर पुस्तक लिखने वाले विद्वानों ने अपनी पुस्तकों में इसका उल्लेख किया है। इतिहासकारों के अनुसार उत्तर भारत के प्रत्येक शासकों की दिलचस्पी चुनार के किले पर कब्जा जमाने की रही है। जिस विजेता का शासन दिल्ली से बंगाल तक हो जाता था उसके लिए चुनार का किला एक महत्वपूर्ण पड़ाव हो जाता था। इसके अतिरिक्त जलमार्ग से इस किले तक पहुंचना भी काफी आसान होता था।


मिर्जापुर के तत्कालीन कलक्टर द्वारा 1924 को दुर्ग पर लगाये एक शिलापत्र पर उत्कीर्ण विवरण के अनुसार उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के बाद इस किले पर 1141 से 1191 ई. तक पृथ्वीराज चौहान, 1198 में शहाबुद्दीन गौरी, 1333 से स्वामीराज, 1445 से जौनपुर के मुहम्मदशाह शर्की, 1512 से सिकन्दर शाह लोदी, 1529 से बाबर, 1530 से शेरशाहसूरी और 1536 से हुमायूं आदि शासकों का अधिपत्य रहा है। शेरशाह सूरी से हुए युद्ध में हुमायूं ने इसी किले में शरण ली थी।( ई सब हम देखले हई खुद जाके आपो लोग देख सकलैन)  खैर जहां तक इस किले के निर्माण का सम्बंध है कुछ इतिहासकार 56 ईपू में राजा विक्रमादित्य द्वारा इसे बनाया गया मानते हैं। कुछ इतिहासकार इसके निर्माण वर्ष पर अपनी मान्यता प्रदान नहीं करते। शेरशाह सूरी ने चुनार के दुर्ग का महत्व बेहतर समझा। चुनार से बंगाल तक सूरी के शासनकाल में कोई अन्य किला नहीं था। हालांकि बाद में शेरशाह ने बिहार के सासाराम में एक किले का निर्माण खुद कराया।
शेरशाह सूरी के पश्चात 1545 से 1552 तक इस्लामशाह, 1575 से अकबर के सिपहसालार मिर्जामुकी और 1750 से मुगलों के पंचहजारी मंसूर अली खां का शासन इस किले पर था। तत्पश्चात 1765 ई. में किला कुछ समय के लिए अवध के नवाब शुजाउदौला के कब्जे में आने के बाद शीघ्र ही ब्रिटिश आधिपत्य में चला गया। शिलापट्ट पर 1781 ई में वाटेन हेस्टिंग्स के नाम का उल्लेख अंकित है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस किले पर उत्तर प्रदेश सरकार का कब्जा है।
किले की ऐतिहासिकता का विवरण अबुलफजल के चर्चित आईने अकबरी में भी मिलता है। फजल ने इसका नाम चन्नार दिया है। लोकगाथाओं में पत्थरगढ़, नैनागढ़, चरणाद्रिगढ़ आदि नामों से जाने जानेवाला यह किला किवंदतियों के अनुसार विक्रमादित्य ने अपने भाई भतृहरि के लिए बनवाया था। विलासिता व भोग के जीवन से विरक्त भतृहरि ने यही तप साधना की थी। दुर्ग में आज भी उनकी समाधि बनी हुई है। हालांकि तमाम इतिहासकार इसे मान्यता नहीं देते हैं पर मिर्जापुर गजेटियर में इसका उल्लेख किया गया है।
गजेटियर में संदेश नामक राज का सम्बन्ध का भी उल्लेख है। माना जाता है कि महोबा के वीर बांकुरे आल्हा का विवाह इसी किले में सोनवा के साथ हुआ था। सोनवा मण्डप आज भी किले में मौजूद है। ऐतिहासिक एवं रहस्य रोमांच का इतिहास अपने हृदय में समेटे इस किले का इस्तेमाल फिलहाल पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र के रुप में किया जा रहा है। लिहाजा पर्यटक इस किले के दीदार से वंचित रह जाते हैं।(ससुर के नाती सब हम सब को  घुसही नहीं देते केतनो बतावा की हम एहिजे के हई फिर भी )
पर्यटन को बढ़ावा देने का ढिढोरा पीटने वाली सरकारों का इस ओर ध्यान नही है दुर्ग जगह-जगह से दरक रहा है। यह ऐतिहासिक धरोहर किसी भी समय ध्वस्त हो सकता है। भले ही चन्द्रप्रकाश द्विवेदी के लोकप्रिय धारावाहिक चन्द्रकांता के बाद इसी नाम से एक और टेलीविजन धारावाहिक का प्रदर्शन शुरू होने वाला हो पर सरकार का ध्यान इस किले को बचाने की ओर नहीं है।

(रामपुर पढ़ते थे चंद्रकांता और शक्तिमान देखने के लिए सरपट चाल भाग कर आते थे, उस बक्त गांव में अगर लाइट कट जाती थी तो प्रदीप जो की मेरा मित्र हई बैटरी लगाकर देखते थे)




Pseudo-intellectualism

Pseudo-intellectualism is a social stance. A pseudo-intellectual wants other people to thinkhe's smart. He will work towards that goal in the most economical way possible. 

An intellectual will read a whole book, because his goal is to understand the book. A pseudo-intellectual will read the Cliff Notes, because his goal is to convince people that he's read the book. And you don't need to read a whole book in order to make most people think you have. Cliff Notes are more efficient.

परिवारवाद की राजनीती की कुछ झलकियां !


बात शुरू करता हु हरियाणा से क्योंकि आजकल हरियाणा की गुडगाँव ही मेरी कर्मभूमि बनी हुई है!
चुकी यही एक हास्पिटैलिटी कंपनी में कार्यरत हु! लोगो और सहकर्मियों की बातो से भी सीखता हु अतएव ब्लॉग लिखने की इच्छा हुई !

 देवी लाल, बंसी लाल और भजन लाल का कभी हरियाणा की राजनीति पर दबदबा हुआ करता था.
ये तीनों नेता अब नहीं रहे लेकिन प्रदेश की राजनीति पर उनके परिवारों का असर बना हुआ है.
इन तीनों का ज़िक्र हरियाणा की राजनीति में परिवारवाद का पर्याय बन गया है. और बदस्तूर आप इस बात से यहाँ खासकर गुडगाँव में दो चार होते रहते है की फलाना पार्क देवी लाल जी के नाम पर है तो भजन लाल जी के नाम पर भी स्टेडियम इत्यादि है  इस दायरे में मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा और ओम प्रकाश चौटाला से लेकर इंदरजीत राव और सुषमा स्वराज तक सभी आ जाते हैं. राजनीति शास्त्री मोहम्मद ख़ालिद कहते हैं, "हरियाणा की राजनीति कुछ परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती है. यह परिवार अपने साथ जाति आधारित वफ़ादारियां पाले हुए हैं. इनकी पकड़ को कमजोर करना इतना आसान नहीं है."

कुलदीप बिशनोई की बात करता हु, 
भजन लाल के बेटे कुलदीप बिशनोई ने भाजपा व कांग्रेस से गठबंधन ख़त्म कर लिया है.
अब इन परिवारों का रुझान राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं से आगे बढ़ गया है.
कांग्रेस ने राज्य सरकार में वित्त मंत्री हरमोहिंदर सिंह चट्ठा के बेटे मंदीप सिंह, राव धर्मपाल के बेटे विरेंदर सिंह, बलबीर पाल शाह के भाई विरेंदर पाल शाह, फूल चंद मौलाना के बेटे वरुण चौधरी के साथ-साथ नवीन जिंदल की माँ सवित्री जिंदल को उम्मीदवार पूर्वकाल में बनाया था !
भूपिंदर हुड्डा के बेटे दीपेंदर हुड्डा पहले ही सासंद रह भी चुके हैं. भाजपा ने सुषमा स्वराज की बहन वंदना शर्मा को उम्मीदवार बनाया था.
इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलोद) ने उम्मीदवारों में ओम प्रकाश चौटाला के बेटे और पोते शामिल हैं.
इस सियासी चलन पर राजनीति शास्त्री लोग कहते हैं, "यह पता नहीं चलता कि पंजाब हरियाणा से सीख रहा है. ऐसा भी लगता है कि सभी कांग्रेस से सीख रहे हैं. अब यह रुझान पार्टियों और परिवारों से बड़ा हो गया है. परिवार के नाम पर आप को दूसरी पार्टियां भी उम्मीदवार बनातीं हैं."

भूपिंदर हुड्डा, की बात करते है 
राजनीति से हरियाणा के हुड्डा परिवार का रिश्ता तीन पीढ़ियों से है.
कांग्रेस ने ओम प्रकाश चौटाला के भाई चौधरी रंजीत सिंह को अपने उम्मीदवार बनाया था.
इसी तरह हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजका) पूरी तरह भजन लाल परिवार के इर्द-गिर्द घूमता है.
भजन लाल के बेटे कुलदीप विश्नोई और चंदर मोहन इस दल के बड़े उम्मीदवार हैं.
गोपाल कांडा की हरियाणा 'लोकहित पार्टी' और विनोद शर्मा की 'जन चेतना पार्टी' का वजूद भी उनके परिवारों के साथ जुड़ा हुआ है.

बिन दौरे बस रैली के आसरे मायावती जीत नहीं पाएंगी यूपी, भाजपा शक्ति प्रदर्शन को तैयार : संदीप राय


दिवाली का पर्व भी सपा परिवार में कई दिनों से चल रही रार को कम नहीं कर सका। शायद पहली बार मुलायम परिवार में त्योहार के मौके पर अलग किस्म का खिंचाव दिखा। अनायास ही ऐसे हालात बन गए कि सैफई में मुलायम के चचेरे भाई मुलायम से नहीं मिल सके।मुख्यमंत्री अखिलेश की अपने सगे चाचा शिवपाल से मुलाकात नहीं हुई। खुद परिवार के मुखिया सैफई के बजाए लखनऊ में रहे। असल में मुख्यमंत्री रविवार दोपहर बाद हेलीकाप्टर से अपने परिवार संग लखनऊ लौट आए और उससे पहले प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल लखनऊ से सैफई रवाना हो गए।
इन दोनों के खिंचाव को लेकर खासी चर्चा तो पहले से ही है। मुलायम अपने दांत दर्द के कारण लखनऊ में ही हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उनसे मिलने पांच विक्रमादित्य मार्ग परिवार समेत गए और उनका आशीर्वाद लिया। इसके बाद मुख्यमंत्री 4 विक्रमादित्य मार्ग के अपने आवास चले गए।
खास बात यह है कि सपा से निकाले जा चुके रामगोपाल यादव की भी मुलायम से मुलाकात नहीं हुई। अखिलेश सैफई में रामगोपाल यादव के अलावा परिवार के अन्य सदस्यों से मिले।मुलायम से उनके आवास पर मिल कर तमाम नेताओं मिल कर बधाई दी। हालांकि कुछ समय पहले अखिलेश यादव तनातनी के बावजूद रक्षा बंधन पर अपनी चचेरी बहन व शिवपाल की बेटी से राखी बंधवाने उनके घर गए थे। 
फ़िलहाल तो यही सब देखने को मिला सारी मिडिया खबरों में 

वैसे भी इसमें कोई शक नहीं है की धीर्रे धीरे ही सही बीजेपी का जनाधार २०१४ की तरह ही यूपी में बढ़ रहा है और सीएम न घोसित करने का इनका प्लान इस बार मास्टरस्ट्रोक हो सकता है ! ये जरूर की मायावती नंबर दो पर काबिज होंगी लेकिन भाजपा से काफी पीछे रहकर !
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